उत्तराखंड। उत्तराखंड के चमोली में ग्लेशियर टूटने के बाद खौफनाक मंजर देखने को मिला है। इस मंजर ने 2013 में आई आपदा को याद दिला दिया है। ग्लेशियर टूटने की वजह से कई लोगों के लापता होने की खबर है और कुछ लोगों की जान भी जा चुकी है। इस प्राकृतिक आपदा के घटित होने के पीछे वजह क्या है। मौसम विभाग की माने तो इस आपदा के पीछे बड़ी वजह ग्लोबल वॉर्मिंग है।
==ग्लेशियर क्या होता है?==
ग्लेशियर को हिमखंड भी कहा जाता है। ये नदी की तरह दिखाई देते है और धीरे-धीरे बहते है। ग्लेशियर को बनने में काफी समय लगता है। ये ऐसी जगह दिखते है जहां बर्फ गिरती है। अमेरिका स्थिति नेशनल स्नो एंड आइस डेटा सेंटर के मुताबिक़ अभी दुनिया के कुल भूमि क्षेत्र के 10 फ़ीसदी हिस्सों पर ग्लेशियर हैं। कहा जाता है जब धरती की कुल भूमि का 32 फ़ीसदी और समुद्र का 30 फ़ीसदी हिस्सा बर्फ़ से ढका था। तब जाकर ये पूरा बन पाते है। कुछ जानकारों का ये भी कहना है कि हिमस्खलन से शायद बर्फ़ के टुकड़े ग्लेशियर पर बनी झीलों में गिरे होंगे जिससे कि पानी नीचे गिरने लगा।
==ग्लोबल वार्मिंग क्या होती है==
ग्लोबल वार्मिंग होने की बड़ी वजह ग्रीन हाउस गैस है। यानी जो बाहर से मिल रही गर्मी को अंदर से सुखा देती है। इसका इस्तमाल गर्म रखने के लिए बर्फवारी वाले इलाकों में किया जाता है। जो ज्यादा सर्द मौसम में खराब हो जाते हैं। ऐसे में इन पौधों को काँच के एक बंद घर में रखा जाता है और काँच के घर में ग्रीन हाउस गैस भर दी जाती है।
ये गैस सूरज से आने वाली किरणों की गर्मी सोख लेती है और पौधों को गर्म रखती है। ठीक यही प्रक्रिया पृथ्वी के साथ होती है। सूरज से आने वाली किरणों की गर्मी की कुछ मात्रा को पृथ्वी द्वारा सोख लिया जाता है। इस प्रक्रिया में हमारे पर्यावरण में फैली ग्रीन हाउस गैसों का महत्त्वपूर्ण योगदान है। शहरों में से पेड़ो को काट देना भी इसकी वजह माना जाता है।